मोहित को ५ मिनिट भी कही मन एकाग्र करना बोहोत मुश्किल हो जाता था। और वह खुद भी नहीं समाझ पाता था के ऐसा क्यू होता है। ज्यादातर चीजों में उसे अनुरिचि नहीं थी I कभी कभी उसे ज्ञान प्राप्त करना व्यर्थ भी लगता था क्योंकि अब पाठशाला छोड़े काफी वक्त होगया था। “सही समय सही चीजे नहीं की तो अब उसे कर के क्या फायदा” ऐसा वो हमेशा कहता था। उसकी चंचलता उसे एक क्लास रूम में शांति से बैठने नहीं देती थी।
डोंगरी में ये तकलीफ सिर्फ मोहित की नहीं काफी लड़को की है, पर ऐसा नहीं है के वो सीखना नहीं चाहते है,” बस उन्हें समझे उस तरीके से कोई सिखानेवाला चाहिए। जब करण ने अनेक वीडियो और मानचित्र द्वारा सीखाना शुरू किया तब मोहित और मोहित जैसों के लिए वो एक महत्त्वपूर्ण विकल्प था । मोहित का एक जगा बैठना पांच मिनिट से दस मिनिट होगया था। धीरे धीरे चीजों को समझ के उन्हें व्यक्त करना भी वो सिख रहा था।
करण, स्नेहा और मै हमेशा लड़को को अनुभवपूर्ण पढाई कैसे कराए उसपे ध्यान देते है। तो जब सिद्धांतवाली पढाई पूरी होजाती है तो कलात्मक तरीके से उन चीजों की प्रतिकृति बनाने के लिए प्रोत्साहित करते है। कला के माध्यम से उन्हें खुद उस मुद्दे को समझे इस तरी के से सत्र की रचना करते है। अब मोहित उसमे भी शामिल होने लगा था , अपना एक कोना पकड़ के वो चीजों को मन लगा के बनाने लगा। अवधारणा को समझने लगा था । सब से बेहतरीन बात ये थी की उसकी कल्पना शक्ति बोहोत अच्छी थी और वो उसे अपनी कला में प्रतति करता था। अब मोहित की भैया और दीदी से अच्छी दोस्ती होने लगी थी क्योंकि ये वह जगा थी जहा वो अपनी खुद की पहचान बना रहा था । मोहित का एक जगह बैठना दस मिनिट से ३०-४५ मिनिट्स होगया था। इन सत्रों में हफ्ते में एक बार म्यूजिक सत्र होता है । मोहित ने करण सर से कहा कथा पहले के मुझे म्यूजिक बजाना अच्छा नहीं लगता, एकदम बोर होजाता है। पता नहीं पर उस दिन वो खुद से ही म्यूज़िक सत्र में आया और उसका का आना अभूतपूर्व बात हुई क्योंकि जो इंसान काफी मुश्किल से खुद का ध्यान समेट पाता था वो म्यूजिक सत्र में मग्न होके दो घंटे वाद्य बजता रहा। मैंने सत्र में सब को सूचना दी की आँखों को बंद कर के म्यूज़िक बजाओ और उसे महसुस करो। सब ने कुछ ही पल में आँखे खोल दी पर मोहित ने उन्ह पलो में अपनी आँखे बंद कर के खुद को समेट लिया या बिखेर दिया था पता नहीं पर जो भी धुंद उसके हाथो से निकल रही थी वो उसका आनंद प्रदर्शित कर रही थी। और वो धुन बौहत बेहतरीन थी I
कुछ ही दिन में उसकी जमानत हुई और वो निकल गया। जाते वक्त उसे मुलाकात नहीं हो पायी पर उसके बेस्ट version की छबि वो हम तीनो के मन पे छोड़ गया था। वो वापिस न आए डोंगरी में इसकी दुवा हम करते रहेंगे । इन सत्रों के माध्यम से इंसान के उपजत भाव को समझने का मौका मिलता है। ये एक प्रयास है के मोहित जैसे कही लड़को में वो कुलीन बीज हम बो पाए जो उनके जमीर को जगा पाये।